सुभाष कुमार गौतम / घुमारवीं
घुमारवीं उपमंडल के शिमला-धर्मशाला राष्ट्रीय उच्च मार्ग 103 पर पडने वाली ग्राम पंचायत डंगार से सट्टा गांव दख्यूत गांव पिछले कई सालों से बंदरों के उत्पात का शिकार है। हिमाचल में कई सरकारें आई और गई। मगर आज तक इनका कोई हल नहीँ निकल पाया है। लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। तीन सौ के करीब परिवारों का यह गांव दो हिस्सों में बंटा है।
एक दख्यूत उपरला व दूसरा दख्यूत निचला, दोनों रैव्नयू विलेज है। क्योंकि किसी समय में यहां भरपूर फसल होती थी। अब आलम यह है कि इस गांव की अधिकतर उपजाऊ भूमि बंदरों की उजाड़ के कारण बंजर हो गई है। न के बराबर ही फसल होती है, क्योंकि बंदर फसल छोडते ही नहीं है। लोगों को रोटी के भी लाले पड़ रहे है।
यहां के लोगों जगत पाल, परम देव, ख्याली राम, रुप लाल, राजेंद्र कुमार, सुखरीब, बहादुर चंद, दमोदर, देवराज, रत्न लाल, रमेश कुमार, सुनील कुमार, नंद लाल, सुदर राम का कहना है कि पहले तो इस गांव में बंदर देखने को भी नहीं मिलते थे। मगर सरकार ने जबसे नसबंदी का काम शुरू किया है। तब से इनकी संख्या में भारी वृद्धि हुई है। इनकी संख्या हजारों में हो गई है। नेताओं ने अपने लोगों को खुश करने के लिए नसबंदी के नाम पर अपने इलाकों से पकड़ कर हमारे इन जंगलों में छोड दिए।
जिस कारण यहां के किसान तबाह हो रहे है। जहां कभी टनों के हिसाब से आनाज पैदा होता था। आज सब खत्म हो गया है। इतना ही नहीं अब तो हालात ऐसे है कि यह खुंखार बंदर महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों पर हमला करने से गुरेज नहीं करते। बच्चे अकेले स्कूल तक नहीं जा सकते।
इतना ही नहीं यहां गांव चीड़ के पेडों के जंगल से सट्टा होने के कारण बंदरों का मानों साल भर का बसेरा है। अब इनका आतंक नजदीक के गांव पटा चोखणा, डंगार, रांग बाडी, रोपडी, हरितल्यांगर, जोल तक होने लगा है। जो किसान व बागवानों के लिए किसी आफत से कम नहीं है।