नितेश सैनी/सुंदरनगर
भारतवर्ष में त्यौहार व मेलों के जरिए देश में सांस्कृतिक संपन्नता के बारे में पता चलता है। देश के सांस्कृतिक जीवन के परिपेक्ष्य में कई मोड़ आए और कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को हमेशा याद रखने के लिए त्यौहार व मेलों का प्रचलन शुरू हुआ। किसी भी समाज के सांस्कृतिक जीवन का असली चेहरा त्यौहारों व मेलों में देखने को मिलता है। ऐतिहासिक राज्य स्तरीय नलवाड़ मेला भी इसी बात का प्रमाण है।
शुकदेव ऋषि की तपोभूमि सुंदरनगर में लगभग 500 वर्ष पहले से मनाए जाने वाले नलवाड़ मेले का अहम स्थान है। मेले में जहां किसानों को एक ही स्थान पर अच्छी नस्ल के मवेशी खरीदने का मौका मिलता हैं, वहीं व्यापारियों को अपने पशु बेचने का बाजार मिल जाता है। मगर समय के साथ सुकेत नलवाड़ मेला अपनी आखिरी सांसे गीन रहा है। वहीं आधुनिकता व राजनीति के चलते इस समृद्धशाली परंपरा को ग्रहण लगने से अधिकांश मेलों का वजूद सिमटने के कगार पर है।
पिछले 20 वर्षों से लगातार नलवाड़ मेले में आने वाले सुंदरनगर उपमंडल की ग्राम पंचायत बायला निवासी व्यापारी रत्ती राम ने कहा कि सुंदरनगर नलवाड़ मेला उत्तर भारत का सबसे बड़ा पशु मेला था। समय के साथ-साथ आधुनिकता की दौड़ व राजनीति के कारण नलवाड़ मेला अपनी आखिरी सांसे गीन रहा है। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार के मेलों में लगान (टैक्स) नहीं लेने के कारण सरकार के साथ-साथ व्यापारियों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। पहले मेले में प्रत्येक बैल की खरीद-फरोख्त पर प्रति हजार 3.50 रूपए बतौर टैक्स वसूला जाता था। इस प्रकार से कभी भी खरीद के बाद पशु को बिना किसी कारण वापिस लौटा देता है।
अब टैक्स न कटने के कारण कौन सा पशु बिक गया है, कौन सा नहीं पता नहीं चलता है। वोट की राजनीति के लिए सरकार टैक्स तो माफ कर रही है, लेकिन इसका खामियाजा व्यापारी भुगतने को मजबूर हैं। रत्ती राम ने कहा कि मेले में आने वाले पशुओं की टैगिंग भी नहीं की जा रही है। जिससे मेले के उपरांत आवारा पशुओं को व्यापारियों द्वारा छोड़कर जाने से शहर में समस्या उत्पन्न होगी। सुंदरनगर प्रशासन राज्य स्तरीय नलवाड़ मेले को सफल बताने को लेकर दावे करने से नहीं थकता है।
राज्य स्तरीय नलवाड़ मेला-2019 के पहले दिन बैलों की संख्या को लेकर प्रभारी नगौण खड्ड व फिल्ड कानूनगो लेखराज महलोत्रा ने कहा कि मेले में पहले दिन दोपहर तक 1250 तक बैल पंजीकृत हुए हैं। इससे व्यापारी वर्ग खुश है। उन्होंने कहा कि प्रशासन की ओर से पशुओं के लिए चारा व मेडिकल सुविधा प्रदान करवाई जा रही है। उन्होंने कहा कि मेले में आने वाले पशुओं से कोई टैक्स वसूला नहीं जा रहा है।