अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में नहीं जलते रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले, रथयात्रा के साथ उत्सव शुरू

एमबीएम न्यूज़ / कुल्लू
यहां दशहरा उत्सव की खासियत यह है कि जब देशभर में दशहरा उत्सव संपन्न होता है तो कुल्लू के दशहरा उत्सव का आगाज होता है। उसके बाद सात दिनों तक यह उत्सव चलता है। कुल्लू दशहरे का एक महत्वपूर्ण पहलु यह भी है कि जहां सारे देश में इस दौरान जहां बुराई को दूर करने को लेकर प्रतीकात्मक रावण, कुभंकर्ण, मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं, परंतु यहां अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा समाप्ति के दिन इनके पुतले नहीं जलाए जाते। 

     इस उत्सव में यह उत्सव करीब साढे तीन सौ साल पहले से मनाया जाता रहा है। इसे मनाने की परंपरा आज भी चली आ रह है। वैसे तो शुरूआत में इस महाकुंभ में 365 देवी देवताओं के आने की परंपरा रही है। लेकिन धीरे धीरे यहां आने वाले देवी देवताओं की संख्या में कमी आती गई, जिससे इस बार जिला के तकरीबन 200 से अधिक देवी-देवता देव मिलन के इस महाकुंभ कुल्लू दशहरा में भाग ले रहे हैं। सात दिनों तक रघुनाथ जी ढालपुर स्थित अपने अस्थायी शिविर में विराजमान होते हैं।

ढालुपर में भगवान रघुनाथ की रथयात्रा के साथ दशहरा उत्सव शुरू
ढालपुर मैदान में सुबह से ही घाटी के लोगों ने अपने अपने देवी देवताओं को ढालपुर मैदान और भगवान रघुनाथ के दरवार पहुंचाना आरंभ किया और भगवान रघुनाथ के मंदिर जाकर शिश नवाया।दोपहर बाद रंगीन एवं सुंदर पालकी से सुसज्जित अपने पूर्ण वैभïव के साथ विराजमान देवभूमि कुल्लू के अधिष्ठाता देव भगवान् रघुनाथ जी को पालकी में बिठा कर उनके सुल्तानपुर स्थित मूल मंदिर से ढालपुर मैदान तक लाया गया तथा पूरे विधि-विधान से उनकी मूर्ति को मैदान के एक छोर में खड़े रथ में स्थापित किया गया। इस मौके पर देवभूमि के सैंकड़ो देवी-देवताओं ने भी भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में भाग लिया।

       इसके साथ ही सात दिवसीय दशहरे मेले का आगाज हुआ। हजारों लोगों का जयघोष, सैैंकड़ों देवताओं के देवरथ, सैैंकडों की पुलिस टुकडिय़ां और हजारों में दर्शकों के सैलाब से कुल्लू की गलियां और शहर पूरी तरह से धार्मिक आस्था में सराबोर हो गए। देïश-विदेश से आए विभिन्न छायाकारों, मीडिया चैनलों तथा शोधार्थियों का कुनबा इस अलौकिक एवं विहंगम देव दृश्य को अपने-अपने कैमरों में कैद करने को बेताव दिखे। जबकि प्राचीन परंपरा के अनुरूप राज परिवार ने इस शोभायात्रा का नेतृत्व किया, जो अपनी पारंपरिक वेशभूषा में अतिशोभायमान दिख रहे थे।

       एक वर्ष के बाद विभिन्न क्षेत्रों से आए देवी-देवताओं का आपसी मेल-मिलाप का अलौकिक दृश्य देखते ही बन रहा था। इस भव्य नजारे को देखने के लिए हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत भी मौजूद रहे जिन्होंने देव सदन के प्रांगण में लगे पंडाल से रथयात्रा का आनंद लिया।


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