अभिषेक मिश्रा/बिलासपुर
लोभ तुम्हे लुभा ना सकेगा, बल पराक्रम से धरती जीती जा सकती है। किंतु नारी हृदय नही, फिर भी पाना है तुझे पाऊंगा, छल से, बल से, कपट से….. जब यह संवाद सीता हरण की योजना बना रहे रावण का किरदार निभा रहे बृजेश कौशल ने अपनी बुलंद आवाज में कहे तो समूचा नगर परिषद प्रांगण तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। मौका था जिला में चल रही श्री राम नाटक की चौथी संध्या का। रावण का सशक्त एवं दमदार अभिनय निभा रहे बृजेश कौशल की अदाकारी को देखने के लिए लोग अंतिम दृश्य तक पंडाल में डटे रहे। समिति के पुराने कलाकार बृजेश ने रावण के किरदार में जान फूंक कर दर्शकों की वाहवाही लूटी। अभिनय के लिए उत्तरी भारत में विख्यात इस राम नाटक में धीरे-धीरे कला में इजाफा हो रहा है।
इससे पूर्व माता कैकेयी की आज्ञा से वनवासी हुए राम, लक्ष्मण और सीता के मार्ग में गंगा नदी बाधक बनती है। इस दृष्य में केवट दुनिया को भवसागर पार लगाने वाले पुरूषोत्तम राम को गंगा पार लगाते है। भक्ति भाव से परिपूर्ण इस दृश्य में युवा कलाकार अभिषेक डोगरा ने बेहतरीन अदाकारी की प्रस्तुति दी। मर्म स्पर्शी इस दृश्य में केवट की भक्ति देख दर्शकों की आँखे भी नम हो गई। इस दृश्य में अमन और साथियों के नृत्य ने भी खूब समा बांधा। केवट ने भगवान से आग्रह किया कि हम आपको गंगा पार तो लगा देंगे, लेकिन आपसे भी एक निवेदन है कि आप हमें भवसागर रूपी इस संसार से पार लगा दें। केवट के भाव समझ कर प्रभु राम भी मंद-मंद मुस्काते हुए केवट की बात पर सहमति प्रदान करते हैं। वहीं दूसरी ओर ननिहाल गए भरत और शत्रुघ्न को जब कैकेयी और मंथरा द्वारा रचित षडय़ंत्र का पता चलता है तो वह आग बबूला होकर अयोध्या पहुंचते है और अपनी माता कैकेयी को खूब भला बूरा कहते है।
भरत माता कैकेयी से कहते हैं, कि वे अब बिना राम के अयोध्या एक क्षण भी नहीं रूकेंगे। भरत, शत्रुघ्न के साथ चित्रकूट की ओर प्रस्थान करते हैं। जहां वे भगवान राम और लक्ष्मण को वापिस अयोध्या लेने का हठ करते हैं। इस पर राम भरत को समझाते हैं। भरत राम से उनकी चरण पादुकाएं लेकर वापिस अयोध्या लौट आते हैं। इस संध्या में भरत का पारस गौतम, शत्रुघ्न जायद शेख, कैकेयी शुभम, रावण का अभिनय बृजेश कौशल, मेघनाद नितिन, विभीषण का रजत कुमार, महोदर अभिषेक डोगरा और शुभम किग्गा ने शुर्पन का तथा प्रवीण ने मंथरा का किरदार निभाया ।