अभिषेक मिश्रा/बिलासपुर
ऐतिहासिक श्री राम नाटक मंचन के तीसरी संध्या के प्रथम दृश्य सीता स्यवंवर को देखने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी थी। इस दृश्य में मिथिला नरेश जनक अपनी पुत्री सीता के विवाह को लेकर स्वयंवर का आयोजन करते है। जिसमें भाग लेने के लिए दूर-दराज के राज्यों से सम्राट पहुंचते है। इस दृश्य में जनक का अभिनय कर रहे वरिष्ठ कलाकार रजत कुमार ने पुत्री के विवाह की चिंता और व्याकुलता को बड़ी शिद्दत से प्रस्तुत कर जनता की वाहवाही लूटी। स्वयंवर में जब सभी राजा और राजकुमार शिव धनुष की प्रत्यंच्चयां चढ़ाने में असमर्थ हो जाते हैं तो जनक क्रोधित होकर सभी राजाओं को वापिस अपने राज्य में जाने की बात कहते हैं।
ऐसे में लक्ष्मण क्रोधित होकर जनक को भी उल्टा जबाव देते हैं। भगवान राम लक्ष्मण के क्रोध को शांत करते हैं और गुरू विश्वामित्र के आशीर्वाद से शिव धनुष को भंग करते हैं। तत्पश्चात माता सीता और विवाह संपन्न हुआ। इस मौके पर भव्य आतिशबाजी का आयोजन किया गया। दूसरे दृश्य में मंथरा कैकेयी को महाराजा दशरथ के पास धरोहर स्वरूप बचे दो वचनों की पूर्ति की बात कहती है। कैकेयी महाराज दशरथ से अपने वचनों में एक से भरत को अयोध्या का राजा और दूसरे से राम को चौदह वर्ष का वनवास मांगती है। कैकेयी के कटुवचन सुनकर महाराज दशरथ बेसुध हो जाते है। भगवान राम पितृ आज्ञा से चौदह वर्ष के लिए वनों की ओर प्रस्थान करते हैं।
तृतीय संध्या के अंतिम दृश्य में जब कौशल्या को राम के वनवास का पता चलता है तो वह कैकेयी और महाराज दशरथ को भला बुरा कहते हुए राम को वन न जाने के लिए कहती है। लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। ऐसे में भगवान राम कहते हैं रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई। इस संध्या में कौशल्या का अभिनय कर रहे मोहमद आसिफ ने अपने किरदार से पूरा न्याय किया।
तीसरे संध्या में कैकेयी का अभिनय शुभम कुमार, मंथरा का प्रवीण कुमार, राम का नवीन सोनी, लक्ष्मण का रिशु शर्मा, परशु राम का सुखदेव , जनक का रजत कुमार, सीता का अभिनय कार्तिक शर्मा ने किया। जबकि आशीष कंडेरा, धीरज वर्मा, रोहित कौंडल, रमन गागट, मनीश कौंडल, दशरथ सुशील पुंडीर, विश्वामित्र राजेंद्र चंदेल आदि ने अहम भूमिका निभाई हैं।