एमबीएम न्यूज़/बद्दी
करीब 66 वर्ष पहले दिल्ली के लोधी रोड स्तिथ सिंधी स्कूल की कक्षा पांच में पढने वाले 10 साल के एक बच्चे के मन में उसके शिक्षक की प्रेरणा ने ऐसी ललक जगाई की वह उसे आज 76 साल की उम्र हो जाने के बाद भी जज्बे के साथ सहेजे हुए है। दिल्ली निवासी 76 वर्षीय जवाहर इसरानी 66 साल की मेहनत के बाद दुनिया के 208 देशो की 30000 से अधिक डाक टिकटों का संग्रह कर चुके है। जिनके माध्यम से वो बच्चों को शिक्षित करने की अनूठी पहल कर रहे है। इसरानी एक जापानी कंपनी में निरीक्षण अभिवक्ता के रूप में काम कर रहे है। इन दिनों वो कंपनी के कार्यो से हिमाचल प्रदेश के बद्दी में ठहरे हुए है। उनकी इस अनूठी रूचि और उम्र के इस पडाव पर पहुंच कर भी जज्बे को बनाए रखने को लेकर उन्होने पत्रकारों से बात-चीत की।
इसरानी दिल्ली की दिलशाद कॉलोनी में रहते है। बंटवारे के समय उनका परिवार पाकिस्तान से भारत आया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा लोधी रोड के सिंधी स्कूल में हुई। जहां डॉक्टर मोतीलाल जोतवानी उनके शिक्षक थे। जिन्होंने एक दिन प्रत्येक बच्चे को किसी ना किसी चीज में रूचि रखने के बारे प्रेरित किया। जोतवानी को बाद में हालांकि सरकार ने पद श्री से सम्मानित किया था। अपने शिक्षक की प्रेरणा पांचवी कक्षा के विद्यार्थी जवाहर इसरानी के मन में ऐसी बैठी की उन्होंने उसी दिन से डाक टिकटों का संग्रह करना शुरू किया। जो आज 76 साल की उम्र में भी उसी जज्बे के साथ अनवरत जारी है। तमन्ना यही है की हम सब एक हॉबी के साथ जिएं।जवाहर इसरानी का कहना है कि उनकी केवल यही तमन्ना है की हर बच्चा अपने जीवन में किसी ना किसी चीज में अपनी हॉबी बनाए और फिर पूरा जीवन उसी में जिए। यह अपने आप में ही एक अलग तरह का अनुभव होता है। टिकट संग्रह की रूचि को वह सब रुचियों का राजा मानते है।
66 साल की इस अंधक मेहनत के नतीजे से आज इसरानी का संग्रहण काफी बडा हो चूका है। उनके पास आज 208 देशो की 30000 से अधिक डाक टिकटें है। इनमे भारत की वर्ष 1995 से 2018 तक की डाक टिकटें शामिल है। जिन्हे अलग-अलग थीमों जैसे पशु- पक्षी, पेंटिंग, झंडे, ऐतिहासिक इमारते, राष्ट्रीय ध्वज, पेड -पौधे, कवि, लेखक, खेलकूद, यूजिम, सिनेमा, स्वतन्त्रता सेनानी, कार्टून के आलावा देशो का हिसाब रखा गया है। आज भले ही पूरी दुनिया में तकनीकी सेवाओं के विस्तार के कारण डाक सेवा, डाक टिकटों का प्रचलन काफी कम हो गया है। जिसका सीधा प्रभाव यह है की आज के बच्चे इस विषय में ज्यादा कुछ जानते भी नहीं है।
इसरानी बताते है कि डाक टिकट चिपकने वाले कागज से बना एक साक्ष्य है जो यह दर्शाता है कि डाक सेवाओ के शुल्क का भुगतान हो चूका है। डाक टिकट संग्रह के अंतगर्त डाक टिकटों को ढूंढना, चिन्हित करना, प्राप्त करना, सूची बद्ध करना, प्रदर्शन करना, संग्रह करना आदि कार्य शामिल है। डाक टिकट संग्रह की रूचि को सभी रुचियों का राजा कहा जाता है। इसरानी अब तक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गुढगांवा, पानीपत, भटिंडा, लुधियाना, दुर्गापुर, विशाखापत्तनम, चोकाये, सिल्लीगुडी, आसनसोल, कथनी, रांची, कोटा, ग्वालियर, भीलवाडा, भरतपुर, जयपुर, मेहली, वोलानी, सहित देश के विभिन्न शहरों में अपने संग्रह का प्रदर्शन स्कूलों, कॉलेजो, कार्यालय और संस्थाओ में कर चुके है।
उनका कहना है की इस तरह की चीजों को देखने के बाद बच्चो के मन में उत्सुकता रहती है। बाद में बच्चे उसे जानने के लिए इंटरनेट पर उसका गहन अध्यन भी करते है। इससे सामान्य ज्ञान तो बढता है तथा दूसरे देशो की भूगोल संस्कृति तथा वहां के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। उन्हें इस शौक ने बुजर्ग होने के बाद भी एक्टिव बनाए रखा है।