एमबीएम न्यूज़/बद्दी
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा ओरो कालोनी, वर्धमान मिल, में तीन दिवसीय शिव कथा का आयोजन किया गया। जिसके तृतीय एवं अतिंम दिवस में संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी प्रियंका भारती ने शिव-विवाह का आध्यात्मिक अर्थ बताया कि जीवात्मा का परमात्मा से, कामनाओं का भावनाओं से, नदियों की सागर से मिलन की गाथा का नाम है। भगवान शिव ने यदि श्रृंगार किया, तो जग को सत्य से जोडने के लिए, विवाह किया, तो वह भी जग के कल्याण के लिए। भगवान शिव के रूद्र रूप को देखकर सभी हिमाचलवासी भयभीत हो जाते है।
महारानी मैना तो स्पष्ट शब्दों में कह देती है, कि मैं अपनी पुत्री उमा का विवाह रूद्र रूपधारी से कदापि नहीं करूंगी। तब नारद मुनि जी सभी को सत्संग उपदेश प्रदान करते है। वास्तविकता से परिचित होते ही सभी प्रसन्न होकर भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह की तैयारियों में लग जाते हैं। सत्संग का भाव भी यही है। जहाँ सत्य का, ब्रह्म का साक्षात्कार हो। गुरू की कृपा से ही अन्र्तदृष्टि द्वारा अन्तर्घट में ही ईश्वर की दिव्य अनुभूतियाँ होती है। भगवान शिव के माथे पर स्थित जागृत तृृतीय नेत्र प्रेरित करता है, कि हम भी एक पूर्ण गुरू की शरण प्राप्त कर अपना शिव-नेत्र जागृत कराएं। जैसे ही हमारा यह नेत्र खुलेगा, हम अपने भीतर समाई ब्रह्म-सत्ता का साक्षात्कार करेंगे।
इसके अतिरिक्त साध्वी जी ने समाज में फैल रहे नशे के विरूद्ध भी आवाज उठाई। शिवपुराण में वर्णित है, कि भगवान शिव ने भांग का नशा नहीं, प्रभु राम के नाम का नशा किया था। जो ऐसा नशा है कि एक बार चढ जाए, फिर कभी नहीं उतरता। अज्ञानतावश आज युवा पीढी नशे के दलदल में धंसती जा रही है। आज आवश्यकता है युवाओं को प्रभु नाम के शाश्वत नशे का पान करने की। तभी हमारा समाज उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ पाएगा। संस्थान द्वारा नशे के विरूद्ध चलाया जा रहा बोध प्रकल्प युवाओं को नशे छुड़वाने में सहायक सिद्ध हो रहा है।