सुभाष कुमार गौतम/घुमारवीं
हिमाचल प्रदेश के निचले जिलों बिलासपुर, हमीरपुर, ऊना, कांगडा आदि में आज भी अपने अराध्य देव गुगा की गाथाएं लोगों द्वारा घर-घर जाकर सुनाई जाती है। सदियों से यह प्रथा चली आई है। साधारण भाषा में गुगा की गाथा गाने वाले लोगों के इस समूह को मंडली कहा जाता है। रक्षाबंधन के दिन से लेकर कृष्ण जन्माष्टमी तक इन लोगों द्वारा गुगा जहारवीर की जन्भ व उस समय की गाथाओं को गाया जाता है। इन दिनों के अंदर घर-घर गाथा सुनाए जाने को गुगा की सेवा कहा जाता है।
आपको बताते चलें कि रक्षा बंधन के दिन गुगा की गाथा गाने वाला यह लोगों का समूह इकट्ठा हो जाता है। एक गांव में रात को उस दिन एक व्यक्ति के घर पर गुगा का डेरा होता है, जो उस व्यक्ति ने मनोकामना पूरी होने पर रखा होता है। सभी लोगों को बड़े चाव से भोजन करवाया जाता है। इन लोगों द्वारा परिवार गांव की सुख-समृद्धि की कामना करता है। पूरी रात गुगा के जीवन की गाथाएं लोगों को सुनाई जाती है।
इतना ही नहीं अगले दिन पूरे गांव में घर-घर जाकर लोगों को गाथाएं सुनाई जाती है। फिर रात का पडाव अगला गांव होता है। यह सिलसिला जन्माष्टमी तक चलता है। सारी रात यहा भी लोगों का मनोरंजन होता है। माना जाता है कि इस मंडली को ही देव स्वरुप माना जाता है। इस मंडली का प्रतिनिधित्व एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है, जिसे पहाड़ी भाषा में चेला कहा जाता है। देव परिवेश होने पर उनका शरीर किसी शक्ति के कारण पूरे जोर से कांपता है। जिसको पहाड़ी भाषा में खेल कहा जाता है। सच्ची श्रद्धा से खेलने वालों की संख्या 20-25 हो जाती है।
इन लोगों के पास एक गूगा जहारवीर का नेजा जिस पर गूगल धूप हमेशा जला रहता है। जितने दिन यह प्रक्रिया चलती है, सबके पास अपना अपना डमरू व एक मैटल यानी काँसे की थाली और लोहे के बने संगल होते है संगवा का प्रयोग उस समय किया जाता है जब ये लोग खेलते है और इस संगल से शरीर पर वार किए जाते हैं। सैंकड़ों बार इन लोगों द्वारा अपने शरीर पर इस संगल से वार किए जाते है, लेकिन ये लोग इसे गूगा की कृपा ही मानते है कि इनको न तो इसका दर्द होता है न कोई निशान पडता है।
एक बात आपको बताते चले कि इस मंडली में यह लोग इसलिए नहीं फिरते की पैसे मिलते है, यह अपने अराधय देव के लिए श्रद्धा है। यहाँ तक की सरकारी नौकरी करने वाले लोग भी इन दिनों में विशेष छुट्टी लेकर सेवा करते हैं, क्योंकि कभी उनके पूर्वज यह सेवा करते थे और ये लोग मानते है कि अगर न आए तो घर परिवार में अनिष्ठ होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोग बडे चाव से अपने घरों में इस मंडली का आदर सत्कार करते हैं।
अनाज व पैसे भेंट करते हैं, क्योंकि यह लोग पूरे एक साल बाद लोगों के घरों में आते हैं। हैरानी की बात यह है कि जितने दिन मंडली चलेगी, यह सभी लोग नंगे पांव घूमेंगे। चाहे धूप, बारिश, रात-दिन क्यों न हो और यही सच्ची श्रद्धा है। कई गुगा मंदिरों में जन्माष्टमी के अगले दिन मेला आयोजित किया जाता है तथा कुछ जगह बाद में भी मेले आयोजित किए जाते हैं।
बिलासपुर के दख्यूत, झंडूता के गेहठवीं बरमाणा में बडे स्तर पर मेलों का आयोजन होता है और बडे स्तर पर गुगा के मंदिरों में अनाज व पैसा चढाया जाता है। इस वक़्त लोगों की मक्की की फसल तैयार हो गई है। लोग सबसे पहले मक्की अपने अराध्य देव के चरणों में अर्पित करते हैं और पारिवारिक सुख शांति की कामना करते हैं।