अभिषेक मिश्रा/ बिलासपुर
ज़िला भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा बुधवार को मासिक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन संस्कृति भवन के बैठक कक्ष में किया गया। सर्वप्रथम साहित्यकारों द्वारा दीप प्रज्जवलित करके किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता ज़िला भाषा अधिकारी नीलम चंदेल ने की तथा मंच का संचालन रविन्द्र भट्टा द्वारा किया गया। सर्वप्रथम प्रकाश चन्द शर्मा द्वारा मां सरस्वती की वन्दना की गई। इसके उपरान्त सरस्वती देवी की कविता की पंक्तियां थीं ‘‘ तेरा गम तो गम है, मेरा गम कितना कम है।
जसवन्त सिंह चन्देल की कविता की पंक्तियां थीं’उचय मेरे घर को तूने”अगर जने अतिश किया तो यकीनन है, तेरा घर भी जला दूंगा। जीतराम सुमन की कविता का शीर्षक था-उचय‘‘गलाई नी सक्या‘‘ पंक्तियां थीं-ंउचय उच्चियां-ंउचयनिठियां गल्लां जे बलोईगी हूंगी, इन्हां गल्लां ने तुसे बुरा नी मनायों, मिलगे टैमें-ंउचयबेटैमें कित्ती बी, सुखा-ंउचयदुखा री गठरी मिल्ली के चुकवायों‘‘। रूप शर्मा की रचना की पंक्तियां थीं-ंउचय चप्पला री मार दारू-ंउचयपडदादू याद कराई देन्दें। अवतार कौण्डल ने ‘‘अलविदा-ंउचय-ंउचय शीर्षक से रचना प्रस्तुत की-ंउचय पंक्तियां थीं-ंउचय ‘‘ईंगित कर नाम अपना हम दुनिया से रवाना हो चले‘‘।
सुरेन्द्र मिन्हास ने ‘‘नन्द नी आई ‘‘ शीर्षक से रचना प्रस्तुत की, पंक्तियां थीं-ंउचय स्टेजा पर नचदी गांवा री जनाना, पर कहलूरी उत्सवा रा रूप प्रचण्ड, चऊं पासंयां दे रब्धा जालू जे मैं, सैकडों लोक लई करो पूरी नन्द,सोफे पर बैठुरे डीसी साहब, डीएलओ मैडम कठयालपन निभाओ, अभिषेक ओरी रा छैल मंच संचालन, प्रेमलता ओरी नोटां री बरखा लाओ। नरैणू राम हितैषी की रचना की पंक्तियां थीं-ंउचय मेरी पत्नी बडी भोली, इक दिन मु-हजये बोली।
कैप्टन बालक राम शर्मा (रिटार्यड) की रचना की पंक्यिां थी-ंउचय दोस्त अब थकने लगे हैं रात को नींद में जमने लगे हैं‘‘। रविन्द्र चन्देल की कविता की पंक्तियां थीं-ंउचय कविता ओर कवि में जंग है,संसार इनसे तंग हैं, कवि उडे आसमान, समाये पाताल, एक शेर तो दूजा सवा शेर‘‘। मंच का संचालन कर रहे साहित्यकार रविन्द्रा भटटा की रचना थी-ंउचय टूटी मंजी, बाण पुराना, सोण नी दिन्दा हइसा, जिन्दड़ी चलाणी सारी उमर, जेबा नियां पैसा‘‘।
प्रदीप गुप्ता ने विश्व कविता दिवस पर पत्र वाचन किया व इतिहास शीर्षक से रचना प्रस्तुत की। हुसैन अली की कविता की पंक्तियां थी-उचय इश्क की इंतिहा हो गई,एक सूरत खुदा हो गई ‘‘। एस. आर.आजाद की रचना की पंक्तियां थीं-ंउचय जब तुम्हें मु-हजयसे कोई वास्ता ही नही तो मेरे पास आती हो क्यों ? प्रोमिला भारद्वाज ने -ंउचयन तुम बुरे न हम बुरे हम सब हैं खरे, स्वार्थ से रहे गर परे‘‘। इन्द्रेश शर्मा की रचना की पंक्तियां थीं-ंउचय इतने सारे रंगा कने तैं अजे तक रंगेया,सारे रंग फीके निकले तूं गा-सजय़े रंगे रंगी दे ‘‘।
कुमारी कंचन ने बन्दले री धारा रा नजारा ओ शीर्षक से पहाड़ी लोकगीत प्रस्तुत कर खूब तालियां बटोरी। मोनिका द्वारा भी कविता पाठ किया गया व महिला मण्डल भटेड जकाखाना की महिला सदस्यों द्वारा देश भक्ति गीत व बेटी प-सजय़ाओं बेेटी बचाओ गीत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर ज़िला भाषा अधिकारी नीलम चन्देल ने सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त और कहा कि कवि व साहित्यकार अपनी रचनाओं से समाज को स्वस्थ व सही राह दिखाते हैं। कवि को अपना लेखन कार्य निष्पक्ष रूप से करना चाहिए। इस अवसर पर परमदेव शर्मा, इन्द्र सिंह चन्देल, कान्ता देवी, प्यारी देवी व अन्य भी श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे।