हमीरपुर( एमबीएम न्यूज़) : संघे शक्ति कलियुगे इस सूक्ति को सच साबित कर दिखाया भोरंज के गांव मझो के ग्रामीणों ने। जब हुक्मरानों की चौखट पर दस्तक दे-देकर ग्रामीण थक गए तो सबने मन में ठानी कि क्यों न सब मिलकर अपने आवागमन की व्यवस्था स्वयं करें और फिर इस संकल्प को मूर्त देने के लिए महिलाओं, बच्चों संग ग्रामीण कुदाल-फावड़ा लेकर आ डटे।
ग्रामीणों ने श्रमदान कर 2 किमी कच्ची सड़क स्वयं बना ली। उपमंड़ल के गांव मझो के ग्रामीणों ने मुख्य रास्ते को बनवाने की मांग के लिए ग्रामीण ब्लॉक अधिकारियों से लेकर जिला प्रशासन के आला अधिकारियों की चौखट में पहुंचे किन्तु किसी ने सुध नही ली। गांव तक जाने वाले राजनीतिक दल के लोगों से भी ग्रामीणों ने गांव को मुख्य सड़क तक जोडऩे के लिए मांग की किंतु महज आश्वासन की घुट पिलाने के बाद सभी ने अपना उल्लू सीधा किया और दोबारा मुड़ के उधर नहीं पहुंचे।
ग्रामीणों का कहना था कि बीते 69 वर्षो में गांव को मुख्य मार्ग से जोडऩे के लिए जब कोई पहल न हुई तो इसे स्वयं ही बना डाला। ग्रामीणों ने अपने बलबूते पर गांव तक 2 किलो मीटर वाहन योग्य कच्ची सड़क बनाकर संदेश दिया है कि वह स्वयं भी सड़क बना सकते हैं। उपमंडल मुख्यालय भोरंज से महज 4 किलो मीटर की दूरी पर बसे धिरड़ पंचायत के मझौ गांव के लोगों ने अपनी भाग्य रेखा स्वयं बनाई है। लगभग 2 किलो मीटर मार्ग स्वयं ही बना डाला।
ग्रामीणों ने डेढ़ लाख के करीब धन एकत्र कर जेसीबी लगवा कर स्वयं सड़क का निमार्ण करवा दिया। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने सत्तासीन होने वाली हर सरकार के समक्ष सड़क निर्माण की मांग रखी, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। जवाब यही मिला कि पहले जमीन की गिफ्ट डीड करवाओ उसके उपरांत निर्माण कार्य आरंभ किया जाएगा।
लोगों की अपनी जमीन न होने के कारण मार्ग निर्माण का कार्य हर बार ठंडे बस्ते में चल जाता। इसको देखते हुए ग्रामीणों ने जेसीबी मशीन से करीब 2 किलो मीटर वाहन योग्य सड़क बना दी और इसे डाडु सड़क मार्ग से जोड़ दिया। इसके बाद गांव में दोनों तरफ से गाड़ी पहुंच पाएगी।
मझौ गांव के पूर्व उपप्रधान शशिकांत, तिलक राज शर्मा, केशव शर्मा, प्यार चन्द, सुरेश नेगी, वतन चन्द, पवन कुमार, धर्म सिंह, प्रदीप कुमार, हेम राज नेगी,उत्तम नेगी, अशोक नेगी, विक्रम नेगी इत्यादि लोगों ने सहयोग किया। लोगों ने बताया कि गांव तक सड़क नहीं होने के कारण लोगों को दिक्कत हो रही थी। कई बार सरकार से गुहार लगाई गई पर कुछ नहीं हुआ।
ग्रामीणों ने बैठक कर स्वयं सड़क बनाने का निर्णय लिया। इसके लिए पहले श्रमदान किया गया। फिर जेसीबी लगाने की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए ग्रामीणों ने प्रति परिवार 1000 से 2000 रुपए एकत्रित किए और सड़क कार्य शुरू किया।