इतिहास के पन्नों से…पढि़ए, कैसे कहलूर रियासत में भाई के लिए भाई चढ़ गया था फांसी।

घुमारवीं (सुभाष कुमार गौतम) : बिलासपुर के रियासतकालीन समय में मोहन्णा एक एेसा युवक था, जिसने अपने सगे भाई को बचाने के लिए भाई द्वारा की गई हत्या का इल्ज़ाम अपने ऊपर ले लिया था। आधुनिक समय में मोहन्णा का गांव जिला से लगभग 60-65 किमी दूर बंम पंचायत का गांव रंडोह है, जहां आज भी मोहन्णा की कुर्बानी को याद किया जाता है। बुजुर्ग कहते हैं कि इस गांव के दो भाई, बड़ा तुलसी व छोटा मोहन्णा था। बडा भाई बिलासपुर यानी कहलूर के राजा बजे़यी चंद राजा के पास हाजरी था। यानि कि राजा का मुलाजिम था जबकि छोटा भाई मोहन्णा बहुत ही सीधा व शांत स्वभाव का था और घर पर खेतीबाडी का काम संभालता था।

       एक बार बड़े भाई तुलसी ने गांव में किसी लड़की का खून कर दिया और उसने मोहन्णा से कहा कि वह खून का इल्ज़ाम अपने उपर ले और मै राजा का नौकर हूँ मैं राजा से कहकर तुझे छुडवा लूंगा।  मोहन्णा भाई की बातों में आ गया, लेकिन राजा ने उसके सीधेपन को देखते ही भांप लिया कि मोहन्णा खून नहीं कर सकता। राजा ने बार – बार पूछा कि मोहन्णा सच बता दो मुझे मालूम है कि यह खून तुमने नहीं किया है। लेकिन मोहन्णा को अपने भाई तुलसी पर विश्वास था कि वह मुझे छुड़ा लेगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जब मोहन्णा ने कुछ भी नहीं बताया तो राजा बजेयी चंद अपने बहादुरगढ़ किले में गया, जहां से हुकुम जारी कर दिया कि कल मोहन्णा को सतलुज नदी के किनारे बेडीधाट पर सॉडू के मैदान में फांसी दी जाए।

      वहीं फांसी से एक दिन पहले मोहन्णा ने सारी कहानी संतरी को बता दी थी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्योंकि राजा ने फांसी का हुकुमनामा जारी कर दिया था जिसको बदलना नामुमकिन था।

          1922 में निर्दोष अपराधी मोहन्णा को फॉसी पर लटका दिया गया। अब यह बात लोगों में जंगल की आग की तरह फैल गई और राजा को भी पता चल गया, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। मोहन्णा की इस कुर्बानी पर बिलासपुर का एक गीत आज भी गाया जाता है “बारा बजिए ओ मोहन्णा बारा बजिए तेरे हथा दिया घडिया बरा बजिए चढेया फॉफिया ओ  मोहन्णा चढेया फॉसिया भाईए रीयॉ कीतिए चटेया फॉशिया” क्योंकि  मोहन्णा को विश्वास था कि उसका भाई तुलसी उसे छुड़ा लेगा। फॉसी दिन के 12 बजे दी जानी थी इसलिए मोहन्णा अंतिम सांस तक भाई की कही बात पर विश्वास करता रहा। लेकिन भाई तुलसी हाल पूछने तक नहीं आया, जिसके बहकावे में आकर मोहन्णा फांसी चढ़ रहा था। आज भी बिलासपुर के लोग मोहन्णा की शहादत को गीतों व स्टेज ड्रामों के जरिए याद करते हैं।


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *