मंडी (वी कुमार): जून महीने की तपस ने लोगों को बेहाल कर दिया है। हर किसी का मन करता है कि वह ठंडे इलाके की ओर जाए, ताकि कुछ पल, कुछ समय या फिर एक-दो दिन सुकून मिल सके। ऐसे में मंडी जिला मुख्यालय से सबसे नजदीक महज 50 किलोमीटर की दूरी पर हिमाचल के गुलमर्ग के नाम से विख्यात होते जो रहे देवी दड़ का नाम सब की जुबां पर आ जाता है या फिर कोई बाहरी प्रांत को अपना ऐसी जगह की तलाश में हो तो भी फट से उसे देवी दड़ जाने की सलाह देते हैं।
समुद्रतल से लगभग 7 हजार फीट की उंचाई पर ज्यूणी खड्ड का उदगम स्थल, देवदार के घने जंगलों के बीच मखमली घास वाला एक विशाल मैदान, जून में भी ठंड का एहसास करवाती हवाएं, मां मुंडासन का पहाड़ी शैली का मंदिर और साथ में रियासत काल का बना वन विभाग का विश्रामगृह, सब कुछ जब जहन में आ जाए तो एक दम से यहां जाने का कार्यक्रम बन जाए।
आजकल तो निचले इलाकों में लोग पसीना पसीना हो रहे हैं, शरीर उमस भरी गर्मी से आ रहे पसीने से तर-बतर हो रहे हैं तो ऐसे स्थानों का महत्व यकायक बढ़ जाता है। देवी दड़ का भी यही हाल है। इन दिनों यहां जैसे पर्यटकों, घुमक्कड़ों, यायावरों व कुदरत के प्रेमियों का सैलाब ही आ गया है। अब तो देवीदड़ में होम स्टे की अच्छी सुविधा भी हो गई है, जिससे यहां रात को ठहराव करने के इच्छुक लोगों को भी कोई परेशान होने की जरूरत नहीं है। वाजिव दाम पर खाना पीना ठहरना सब कुछ सुलभ हो गया है।
अब ऐसे स्थान को जाना हर कोई अपना सौभाग्य समझता है, अपने परिवार या फिर मित्र मंडली के साथ यहां जाना बेहद रोमांचक अनुभव रहता है। महीनों तक यहां के जंगलों, कल-कल करते बहते नालों की सुरीली आवाजए गर्मी में दिमाग को पहुंचने वाली ठंडकए बेहद खूबसूरत एवं जिला में सबसे अधिक उपजाऊ ज्यूणी घाटी के मनमोहक दृश्य, खेतों में जुटे किसान, बेमौसमी सब्जियों, सजावटी फूलों व आलू की फसल से लबालब खेत सब कुछ ऐसा सफर एक रोमांच भर दे।
इस सफर में इन दिनों सबसे बड़ा दाग सडक़ ने लगा रखा है। चैलचौक से आगे कोट से जैसे ही जंजैहली मार्ग को छोड़ कर देवी दड़ की ओर बढ़ते हैं शाला, तुन्ना, जाच्छ, धंगयारा, समनोस, जहल तक की सडक़ नाले का रूप ले चुकी है। कहने को तो यह सडक़ पक्की है, कई साल पहले पक्की हो चुकी है मगर वर्तमान में इसकी हालत कच्ची से भी बदतर है। एक तरफ हम पर्यटन की लंबी चौड़ी बातें करते हैं मगर यहां आकर सरकार व प्रशासन के सारे दावे हवा होते हुए दिखते हैं।
सडक को देख कर यह कहना भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कुदरत के बेपनाह सौंदर्य को लोक निर्माण विभाग ने ऐसा पलीता लगा रखा है कि शायद ही एक बार आकर दूसरी बार यहां आने की हिम्मत पर्यटक जुटा सकें। लोग परिवार या मित्र मंडली के साथ महंगी कारों से यहां आना अपना सौभाग्य व शान समझते हैं मगर सडक की दुर्दशा देख कर दुखी नजर आ रहे हैं। अब बरसात का मौसम आने वाला है और लगता नहीं है कि इस सडक़ की हालत इस सीजन में सुधर सकेगी।
बरसात के बाद इस क्षेत्र में ठंड पडऩा शुरू हो जाती है और फिर बात अगले साल पर जाएगी। ऐसे में हम पर्यटन के बढऩे की कितनी उम्मीद बांध सकते हैं, क्या केवल कागजी घोड़े ही दौड़ाए जा रहे हैं। यदि सरकार, प्रशासन, पर्यटन विभाग व संबंध सरकारी महकमे सचमुच में चाहते हैं कि देवी दड़ जैसे स्थल देश व दुनिया में उभरे, देश दुनिया के लोग यहां आएं, स्थानीय लोग भी गर्मी उमस से बचने के लिए कुछ समय इस क्षेत्र में आकर गुजारें तो सबसे जरूरी ध्यान सडक़ को ठीक करने पर ही देना होगा। बाकी तो कुदरत ने यहां इतना बख्शा है कि और कुछ करने की जरूरत ही नहीं है।
मंडी या सुंदरनगर से चैलचौक और फिर वहां से कोट शाला होकर देवी दड़ तक बिखरे सौंदर्य को सही ढंग से निहारना है तो सडक़ को भी दुरुस्त करना जरूरी होगा। यह भी जरूरी है कि आलीशान एसी कार्यालयों पर बैठे अधिकारी भी ऐसे स्थलों का समय रहते भ्रमण करें ताकि कमियों का पता चल सके और उन्हें दूर किया जा सके। ऐसा करने से पर्यटकों की पहली पसंद बन सकता है मंडी का देवी दड़ जो वर्तमान में सडक़ की दुर्दशा के कारण परेशान करने वाले सफर की पहचान बन रहा है।
यह बात अलग है कि लाखों लोगों की जीवन दायिनी बन चुकी ज्यूणी खड्ड के आर पास बसे सैंकड़ों गांवों में संपन्नता देखते ही बनती है। यह संपन्नता घाटी की बेहद उपजाऊ जमीन, फूलों की खेती, बैमौसमी सब्जियां, आलू मटर व अन्य पारंपरिक फसलों से हटकर नकदी फसलों की ओर बढ़ता लोगों के झुकाव होने से आई है। आलीशान मकान, हर घर के आगे खड़ी गाड़ी, हर मकान के उपर नजर आती टीवी डिश, सोलर गीजर, महंगी टाइलें, मारबल व अन्य सामग्री से बने मकान सब संपन्नता के गवाह हैं जो अच्छी बात है, एक सुंदर संकेत है। मगर दुख सिर्फ यही है कि यहां से गुजरने वाली सडक़ बेहद खराब है, जिस पर सरकार की नजर ए इनायत होना जरूरी है।